हताशा से एक व्यक्ति बैठ गया था

विनोद कुमार शुक्ल हे हिंदीतले एक प्रसिद्ध कवी आणि कादंबरीकार आहेत. त्यांची कल्पना आणि वास्तवाच्या सीमेवर रेंगाळणारी लेखनशैली एखादी झुळूक यावी तशी वाचकाला ताजेतवाने करते. ‘लगभग जय हिन्द’ हा त्यांचा पहिला काव्यसंग्रह. ‘नौकर की कमीज़’ ह्या त्यांच्या कादंबरीवर निर्माते मणिकौल ह्यांनी चित्रपट केला होता. ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ ह्या त्यांच्या कादंबरीसाठी त्यांना साहित्य अकादमीचा पुरस्कार मिळाला आहे. वैशिष्ट्यपूर्ण भाषिक अभिव्यक्ती, सर्जनशीलता आणि भावनांची खोली ही त्यांच्या साहित्याची वैशिष्ट्ये 

मानली  जातात.  त्यांच्या कलाकृतींमध्ये  मध्यमवर्गीय जीवनातले बारकावे बखुबीने टिपलेले असतात.

हताशा से एक व्यक्ति बैठ गया था

हताशा से एक व्यक्ति बैठ गया था 

व्यक्ति को मैं नहीं जानता था 

हताशा को जानता था 

इसलिए मैं उस व्यक्ति के पास गया 

मैंने हाथ बढ़ाया 

मेरा हाथ पकड़कर वह खड़ा हुआ 

मुझे वह नहीं जानता था 

मेरे हाथ बढ़ाने को जानता था 

हम दोनों साथ चले 

दोनों एक दूसरे को नहीं जानते थे 

साथ चलने को जानते थे। 

(पुस्तक : अतिरिक्त नहीं) 

विनोद कुमार शुक्ल


दुनिया में अच्छे लोगों की कमी नहीं है

दुनिया में अच्छे लोगों की कमी नहीं है

कहकर मैं अपने घर से चला। 

यहाँ पहुँचते तक 

जगह-जगह मैंने यही कहा 

और यहाँ कहता हूँ 

कि दुनिया में अच्छे लोगों की कमी नहीं है। 

जहाँ पहुँचता हूँ 

वहाँ से चला जाता हूँ। 

दुनिया में अच्छे लोगों की कमी नहीं है- 

बार-बार यही कह रहा हूँ 

और कितना समय बीत गया है 

लौटकर मैं घर नहीं 

घर-घर पहुँचना चाहता हूँ 

और चला जाता हूँ।  

(पुस्तक : कवि ने कहा) 

विनोद कुमार शुक्ल