मुक्ती

मॉं कहती थी ज़ोर से मत हँस
तू लड़की है….
धीरे से चल,
अच्छे घर की भली लड़कीयॉं
उछल-कूद नही करती हैं,
मै चुप रहती…
मॉं की बात मान सब सहती,
लेकिन अड़ियल मन विद्रोही
हँसता जाता, चलता जाता,
तुम लड़के हो,
तुम क्या जानो?
कैसे जीती है वो लड़की,
जिसका अपना तन है बंदी
लेकिन अड़ियल मन विद्रोही…

चित्र : बारान इजलाल, ‘निरंतर’ दिल्ली यांच्या सौजन्याने.